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भारत में 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन (FCC) ने 30 जून को चीनी टेलिकॉम वेंडर्स Huawei Technologies और ZTE Corporation पर पर बैन लगा दिया है. US FCC ने कहा इन सभी कंपनियों की सब्सडियरीज पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ये दोनों चीनी कंपनियां और इनकी सहायक ईकाईयों से 'राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा' है. बता दें कि पहले ही Huawei और ZTE पर लगातार इस बात के आरोप लगते रहें है कि वो चीनी सरकार के साथ अमेरिकी नागरिकों को डेटा साझा करती हैं.
अमेरिका ने क्यों हैं लगाया इन दोनों कंपनियों पर बैन?
Huawei-ZTE पर अमेरिका बीते एक दशक से सवाल उठाता रहा है. इस मामले पर सबसे पहले औपचारिक कदम 2012 में उठाया गया था. तब अमेरिकी की हाउस इंटेलीजेंसी कमिटी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि Huawei और ZTE अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और वहां बिजनेस को इन दोनों कंपनियों से टेलिकॉम उपकरण खरीदने से बचना चाहिए. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इनमें से किसी भी कंपनी ने अमेरिका द्वारा उठा गए सवालों का जवाब नहीं दिया था.
इसके बाद 2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि ZTE अमेरिका में अपना कारोबार जारी रख सकती है, लेकिन उसे 1.3 अरब डॉलर का जुर्माना देना होगा. साथ ही ZTE को उच्च कोटि की सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी. ट्रंप के पहले बाराक ओबामा प्रशासन ने भी ZTE पर 7 साल का प्रतिबंध लगाया था. ओबामा प्रशासन ने यह फैसला ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध का उल्लंघन करने के आरोप में लगाया था.
प्रतिबंध लगाने के इस फैसले पर कैसे पहुंचा अमेरिका?
शुक्रवार को इस इस फैसले पर US FCC के चेयरपर्सन अजित पाई (Ajit Pai) ने कहा CNN-News18 से खास बातचीत में कहा, 'पिछले साल नवंबर में पहली बार FCC ने कुछ रिपोर्ट्स के आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर इस प्रक्रिया को शुरू किया था. इस दौरान हमने सभी स्टेकहोल्डर्स से बात की, जिसमें इंटेलीजेंस कम्युनिटी, नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी. हमनें इन दोनों कंपनियों को भी अपनी बात रखने का मौका दिया. इसके बाद आने वाले महीनों में हमने सभी रिपोर्ट्स का इवैल्युएट किया, जिसके बाद ही हम इस फैसले पर पहुंचे हैं. यह पूरी तरह से हमारे पास उपलब्ध रिकॉर्ड्स के आधार पर लिया गया फैसला है.'
पाई ने बताया कि अमेरिकी कंपनियों द्वारा सालाना 8.3 अरब डॉलर का खर्च अब इन दोनों कंपनियों पर करने की अनुमति नहीं होगी. हम अपने फेडरल फंडिंग पर नजर बनाए रखेंगे. साथ ही, FCC अब यूएस कांग्रेस (US Congress) के साथ मिलकर काम कर रही है कि कैसे पहले से मौजूदा अमेरिकी नेटवर्क सिस्टम में लगे इन इक्विपमेंट्स को रिप्लेस किया जाए. इसके और क्या विकल्प हो सकते हैं.
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इसके पहले ही अजित पाई ने इस फैसले को लेकर कहा था, 'दोनों कंपनियों की चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी और चीन के मिलिट्री के साथ गहरा संबंध हैं. कानूनी तौर पर भी ये दोनों कंपनियां चीन की इंटेलीजेंस सर्विस की सहयोग करने के लिए बाध्य हैं.'
दोनों कंपनियों पर यह प्रतिबंध इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
आपको बता दें कि Huawei टेलिकॉम उपकरण बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. साथ ही यह कंपनी मोबाइल फोन पार्ट्स बनाने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है. इस कंपनी ने दुनियाभर में टेलिकॉम सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं को किफायती दाम पर बड़े टेलिकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में मदद की है.
वहीं, दूसरी तरफ, ZTE कई बड़ी कंपनियों के साथ टाइअप कर उनके पेटेन्टेड इक्विपमेंट को चीन में विनिर्माण करने में मदद करती है. वो भी बेहद कम कीमत पर.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध का मतलब है कि टेलिकॉम इक्वीमेंट की कीमतों में 30 फीसदी तक का इजाफा संभव है. खासतौर से एक ऐसे समय में, जब दुनियाभर में कई देश 5जी सर्विस को लॉन्च करने की तैयारी में है.
भारत पर कैसे पड़ेगा असर?
अमेरिका के इस फैसले से भारत जैसे मित्र देशों पर कोई दबाव नहीं है कि उन्हें भी Huawei और ZTE पर प्रतिबंध लगाना होगा. अमेरिका ने इस बैन का कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. लेकिन, भारत समेत इन देशों पर दोनों कंपनियों पर कुछ ऐसे ही फैसले लेने का दबाव बन सकता है.
8,300 MHz स्पेक्ट्रम में शामिल 5G बैंड के लिए रिज़र्व प्राइस में कोई बदलाव नहीं किया गया है. यह 5.22 लाख करोड़ रुपये है. ऐसे में घरेलू कंपनियों को Huawei या ZTE से टेलिकॉम इक्विपमेंट खरीदने पर कुछ राहत मिल सकती थी. बात दें कि भारत में 4जी सर्विस लॉन्च करने के बाद Huawei ने ही बड़े स्तर पर वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल को टेलिकॉम इक्विपमेंट उपलब्ध कराया था.

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