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गूगल के नाम से आपलोग अच्छी तरह से परिचित होंगे। शिक्षक दिवस पर कई लोग गूगल गुरुदेव को याद करते हैं। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स को इतना तक कहते हैं कि आज के जमाने में गूगल से बड़ा कोई गुरु नहीं है, लेकिन यदि हम आपसे ये पूछें कि अपने गुरुदेव यानी गूगल के बारे में आप कितना जानते हैं तो शायद आप कमजोर पड़ जाएंगे। अधिकतर लोग यही जानते हैं कि गूगल को दो लोगों ने मिलकर शुरू किया था, लेकिन ऐसा नहीं है। गूगल की खोज करने में तीन लोगों का योगदान है, लेकिन उस तीसरे शख्स को फाउंडर्स की सूची में नाम नहीं मिला। आइए जानते हैं कौन है वो तीसरा शख्स?
जनवरी 1996 में गूगल एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुआ था। लैरी पेज और सर्गे ब्रिन (Larry Page and Sergey Brin) ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। दुनिया इन्हें आज गूगल के फाउंडर के रूप में जानती है, लेकिन इनके साथ उस प्रोजेक्ट में तीसरा शख्स भी था। ये तीनों पीएचडी स्टूडेंट थे।
उस तीसरे शख्स का नाम है स्कॉट हसन (Scott Hassan)। स्कॉट इस रिसर्च प्रोजोक्ट के ओरिजिनल लीड प्रोग्रामर थे। गूगल सर्च इंजन (Google Search Engine), जो आज दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन है, इसके लिए ज्यादातर कोड स्कॉट ने ही लिखे हैं, फिर क्यों नहीं मिला नाम? आइए जानते हैं...
दरअसल, एक कंपनी के तौर पर गूगल की शुरुआत 1998 में की गई। रिसर्च प्रोजेक्ट पूरा होते ही और एक कंपनी के तौर पर गूगल के शुरू होने से पहले स्कॉट ने इसे छोड़ दिया था। वह आगे रोबोटिक्स में अपना करियर बनाना चाहते थे। बाद में 2006 में स्कॉट ने विलो गैराज नाम की एक कंपनी शुरू की।
दरअसल, एक कंपनी के तौर पर गूगल की शुरुआत 1998 में की गई। रिसर्च प्रोजेक्ट पूरा होते ही और एक कंपनी के तौर पर गूगल के शुरू होने से पहले स्कॉट ने इसे छोड़ दिया था। वह आगे रोबोटिक्स में अपना करियर बनाना चाहते थे। बाद में 2006 में स्कॉट ने विलो गैराज नाम की एक कंपनी शुरू की।
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